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Taj mahal story
भारत की शान और प्यार के मसाले माना जाने वाला ताजमहल न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बना चुका है और यह है कि यमुना नदी के किनारे सफेद पत्थरों से बने इस भव्य इमारत को
दुनिया के सात अजूबों में शामिल किया गया और अपने कमाल के खूबसूरती के लिए यह पिछले कई दशकों से पूरी दुनिया का व मो फेवरेट टूरिस्ट प्लेस बन चुका है हालांकि दोनों अपनी सुंदरता के लिए पहचाना जाने वाला यह इमारत हजारों लोगों की कड़ी मेहनत का नतीजा है और आज के इस वीडियो में भी हम ताजमहल के
निर्माण से लेकर इसकी पूरी कहानी रिटेल में जायेंगे तो चलिए इस वीडियो के शुरू करते हैं तो दोस्तों इस इमारत को बनवाने का श्रेय जाता है पांचवे मुगल सम्राट शाहजहाँ को जो कि काफी छोटी उम्र में ही यानी कि
सोलह हाँ इसमें अपने पिता की मृत्यु के बाद से गद्दी पर बैठे थे और फिर सोलह जुलाई इसमें उन्होंने ताजमहल बनवाने का निर्णय लिया दरअसल यह फैसला उन्होंने अपनी बेगम मुमताज़ महल को हमेशा याद रखने के लिए दिया था क्योंकि मुमताज़ की मृत्यु साझा के चौदह में बेटे को जन्म देते समय हो गयी वैसे तो शाहजहाँ के कई
साड़ी पत्नियां थीं लेकिन उनमें से वह मुमताज़ को सबसे ज्यादा पसंद करते थे और इसलिए मृत्यु के बाद आप से उन्होंने मुमताज़ की कब्रगाह को सबसे खूबसूरत जगह बनाने का फैसला किया और फिर यह माता बनने के बाद से हर वर्ग हर उम्र के व्यक्तियों के लिए अलग अलग मायने रखता है जैसे कि कम उम्र बच्चों के लिए सफेद रंग
का एक विशाल और खूबसूरत अजूबा जवान लोगों के लिए प्यार की सच्ची दिशा दी और बुजुर्गों के लिए कला का अद्भुत नमूना हालाँकि ताजमहल को बनवाना साझा के लिए इतना आसान नहीं था क्योंकि इसे बनवाने के लिए
उन्होंने पूरी दुनिया के सबसे बेहतरीन कार्यक्रम और सबसे बेहतरीन चीजों का इस्तेमाल किया उन्होंने बगदाद के कारीगरों को पत्थर पर घुमावदार अक्षरों को बनाने के लिए बुलाया उस पाकिस्तान के प्रकार से संक्रमण पर
फूलों का डिजाइन करने के लिए और इसी तरह इस्तांबुल समर्थन और कई अलग अलग जगहों से अलग अलग काम में एक्सपर्ट लोगों को हायर किया हालांकि अभी तक यहाँ तो भी कार्य करो लेकिन इसके अलावा भी उन्होंने कई अलग अलग जगहों से ताजमहल को बनाने वाले समान मनाना उन्होंने कुछ रखने को तो एजेंट बगदाद और
रूस जैसे कई अलग अलग देशों से ख़रीदे थे वहीं समर्पक को राजस्थान के मकराना नाम की जगह से लाया गया और कुल मिलाकर अट्ठाईस तरह के बहुमूल्य रत्नों को संगठन में चला गया और फिर सभी सामानों को इकट्ठा करने के बाद से बीस हज़ार से ज्यादा मजदूर ताज महल पर काम करना शुरू कर दिया और यह पूरा काम
उस्ताद अहमद लाहौरी के अंतर्गत देखा जा रहा था ताकि सामानों को ढोने के लिए एक हज़ार से ज्यादा हाथियों का इस्तेमाल किया गया और फिर सोलह ई शुरू हुआ यह काम अगले कई सालों तक चलकर सोलह में पूरा हो गया हालांकि वैसे तो सौ सैंतालीस में ही ताज महल पूरी तरह से तयार हो गया था लेकिन अगले कुछ साल आसपास की इमारतों और भाग्य
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